निकटवर्ती ग्राम कल्याणपुरा कुहाड़ा स्थित अरावली की पहाडिय़ों में बने श्री छांपाला वाला भैंरू जी का 16 वाँ वार्षिकोत्सव समारोह एवं भंडारा 30 जनवरी को गुरूवार को बड़े ही धुमधाम व हर्षोल्लास के साथ आयोजित किया जायेगा। इस मौके पर विशाल व भव्य मेला, भण्डारा व जागरण का आयोजन होगा। मेले में देश भर से लाखों श्रद्धालू पहुँचकर भैंरू बाबा के दर्शन करते है। मेले की तैयारियों को लेकर कुहाड़ा, पदमा की ढ़ाणी, कल्याणपुरा कलां व पंवाला के समस्त पंच पटेल सहित ग्रामीणों ने बैठक कर 30 जनवरी को आयोजित होने वाले भैरू बाबा के 16 वें वार्षिकोत्सव व मेले की रूपरेखा और तारीख तय की।
29 जनवरी को विशाल कलश यात्रा
जयराम जैलदार ने बताया कि 29 जनवरी को विशाल कलश यात्रा व 30 जनवरी को भंैरू बाबा का लक्खी मेले व वार्षिकोत्सव का आयोजन होगा। मेले में राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। मेले को लेकर ग्रामीणों में काफी उत्साह देखने को मिल रहा है। इसको लेकर पिछले एक माह से ग्रामीण जन सहयोग से भंडारे की तैयारियों में जुटे हुये है। वहीं भण्डारे के लिये एक सप्ताह से ग्रामीणों द्वारा जेसीबी-थ्रेसर की सहायता से चूरमा बनाया जाता है।
जेसीबी-थ्रेसर से बनाया जाता है चूरमा
भण्डारे में लाखों श्रद्धालू भैंरू बाबा की प्रसादी पायेगें। जिनके लिये करीब 515 क्विंटल (51 हजार 500 किलो) चूरमा तैयार किया जा रहा है। जिसे बनाने के लिये जेसीबी, ट्रैक्टर ट्रॉलियां व थ्रेसर काम में लिये जाते हैं। यह मेला अब प्रदेश में इस खास अंदाज में बनाये जाने वाले चूरमे के कारण ही जाना जाता है। मेले में आसपास के ग्रामीण अपने स्तर पर मैनेजमेंट संभालते हैं। मान्यता है कि यहां भैंरू जी को विशेष प्रसादी में चूरमे का भोग लगाया जाता है। गांव के प्रत्येक घर से एक व्यक्ति रोजाना अपना समय निकालकर यहां अपनी सेवा दे रहा है। एक समय में यहां कम से कम 100 लोगों की टीम हमेशा रहती है। मेले से एक दिन पूर्व 29 जनवरी को चोटिया मोड़ से मंदिर परिसर तक लगभग 03 किलोमीटर की कलश यात्रा निकाली जायेगी। भक्तों पर मेला प्रशासन कमेटी की ओर से हैलीकॉप्टर से पुष्प वर्षा भी की जायेगी।
116 सीढिय़ां चढकऱ पहुंचते हैं मंदिर
यह मंदिर कोटपूतली-सीकर स्टेट हाईवे पर है। इसके लिए मुख्य सडक़ से 02 किलोमीटर अंदर जाना होता है। इन दो किमी में 03 भव्य दरवाजों से गुजरना पड़ता है। इसके बाद तलहटी से एक पहाड़ पर चढऩा होता है। करीब 116 सीढिय़ां चढकऱ मंदिर परिसर तक पहुंचा जा सकता है। मंदिर परिसर में प्राचीन भैरव बाबा की मूर्ति स्थापित हैं। इनके साथ ही सवाई भोज, शेड माता व हनुमान जी की मूर्ति स्थापित हैं। वार्षिकोत्सव पर सवाई माधोपुर, ग्वालियर, झालावाड़, कोटा, पीपलखेड़ा, मुरैना, मध्यप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली समेत दूर-दराज से श्रद्धालु भैंरू बाबा के दर्शन करने आते हैं।
ऐसे शुरू हुई महाप्रसादी की परम्परा
मंदिर पुजारी रोहतास बोफा ने भंैरू बाबा मंदिर के इतिहास को लेकर बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार सोनगिरा पोसवाल प्रथम भैंरूजी का परम भक्त था। जो भैरू बाबा की मूर्ति को कुहाड़ा गांव में स्थापित करना चाहता था। जिस पर वह भैरू बाबा की मूर्ति लाने के लिए काशी जी चला गया। भैरू बाबा ने स्वप्न में दर्शन देकर सोनगिरा पोसवाल से बड़े बेटे की बली मांगी। जिस पर वह बेटे की बलि देकर भैंरू बाबा की मूर्ति लेकर चल देता है। तभी भंैरू बाबा अपने भक्त के बलिदान व उसकी परीक्षा से खुश होकर पुत्र को जीवित कर देते हैं। सोनगिरा पोसवाल प्रथम व उसके पुत्र ने पांच पीरों के साथ विक्रम संवत 705 ई वैशाख सुदी पंचमी व शनिवार को की और बारह गोठ (अजीतगढ़) चौसला बसाया। जिसे वर्तमान में कुहाड़ा गांव से जाना जाता है। कुहाड़ा गांव में मूर्ति की स्थापना की और इस स्थापना दिवस पर ग्रामीण वार्षिक उत्सव मनाते हैं। उस दिन जागरण व भंडारे का आयोजन करते हैं।
खेजड़ी वृक्ष की भी होती है पूजा
सोनगिरा पोषवाल प्रथम के सोनगिरा द्वितीय पैदा हुआ। जिसने अपनी बेटी पदमा पोषवाल की शादी बगड़ावत सवाई भोज के साथ मिति बैशाख सुदी नवमी वार रविवार संवत् 934 में की। जिसमें पंचदेव खेजड़ी वृक्ष का मंडप लगाया गया जो वर्तमान में भी मौजुद है। जिसकी आज भी पुजा होती है। पदमा पोषवाल ने वरदान दिया कि जिस स्त्री के संतान सुख नहीं है वह मंडप में उपस्थित जड़ के नीचे से निकलने पर उसको संतान सुख प्राप्त होगा। पोषवाल गौत्र पर इसका वरदान लागु नहीं होता है। तभी से आसपास के क्षेत्र में भैरू बाबा व खेजड़ी के वृक्ष की पूजा होने लगी तथा हजारों की संख्या में लोग इसके दर पर आने लगे।